Hot!

Other News

More news for your entertainment

Sahih Al-Bukhari: Deeds (their correctness and rewards) depend upon intentions



Narrated `Umar bin Al−Khattab (MAPH): I heard Allah's Apostle (PBUH) saying, 

Deeds (their correctness and rewards) depend upon intentions, and every person gets but what he has intended. So whoever emigrated for worldly benefits, or for a woman to marry, his emigration is for what he emigrated for.

Al-Bukhari, As-Sahih, Kitab-al-Bad'al-Wahi, Number: 01

Surah Fatiha: What has been said about Fatiha-tul-Kitab



Narrated Abu Sa`eed bin Al−Mu'alla: While I was praying in the Mosque, Allah's Apostle (PBUH) called me but I did not respond to him. Later I said, "O Allah's Apostle! I was praying." 

He said, "Didn't Allah say'−−"Give your response to Allah (by obeying Him) and to His Apostle when he calls you." (8.24) 

He (PBUH) then said to me, "I will teach you a Sura which is the greatest Sura in the Qur'an, before you leave the Mosque." 

Then he got hold of my hand, and when he intended to leave (the Mosque), I said to him, "Didn't you say to me, 'I will teach you a Sura which is the greatest Sura in the Qur'an?' 

He said, "Al−Hamdu−Li l−lahi Rabbi−l−`alamin (i.e. Praise be to Allah, the Lord of the worlds) which is Al−Sab'a Al−Mathani (i.e. seven repeatedly recited Verses) and the Grand Qur'an which has been given to me."

Al-Bukhari, As-Sahih, Kitab-at-Tafseer, 4474
I- Surah Al-Fatiha (The Opening), Chapter 1: What has been said about Fatiha-tul-Kitab

Related Video:

The Rise of Kharijites


The Kharijites first appeared in the days of the Prophet () and their ideas gained momentum during the caliphate of Uthman until they emerged as a full-fledged and organized group during the caliphate of our master Ali. God Most High alluded to the Kharijites in the Qura’n and there are many Hadith reports that explain their signs, beliefs, doctrines and practices. In general, the Kharijites committed acts of terrorism and carried out atrocities in the name of Islam. Due to their extreme and specious religious arguments, they would declare it permissible to shed the blood of the Muslims.

Many disruptions erupted in the Ummah after the passing of the Prophet () including false claims to prophet-hood, apostasy, refusal to pay Zakat and rejection of some basic teachings of the Islam. Those who embraced the beliefs of the Kharijites promoted their wrapped understanding, exploited these disruptions and began organizing themselves. Those who actively hatched the conspiracy against Uthman, and ultimately killed him in the final days of his rule, were composed of the people who held the extremist beliefs of Kharijites. The most prominent of them was name Abd Allah b. Saba. This was the first time an extremist and terrorist group challenged the authority of the Islamic state.

Practically, the Kharijites surfaced in the caliphate of the fourth caliph Ali. However, the Prophet () had given them the title Kharijites well before that, saying: “They shall exit from the religion just as an arrow exits from a hunted game.” When we look critically at the history of the Kharijites, we see that they came out as a violent movement in Ali’s name. They were against dialogue and peaceful settlement of the disputes and raised the slogan la hukma illa li-llah-i arguing,

تُحَکَّموُنَ فِی اَمْرِ اللہ الرَّجَالَ؟ لَا حُکْمَ الَّا للہِ!

“Do you seek judgment from men in that which is God’s command? There is no judgment but for God.”


The Kharijites initiated an armed rebellion against Ali and based themselves in Harura, located on the Iraqi border. They accused him of polytheism and blameworthy innovations and declared him a disbeliever and rebelled against him. They formed a group at Harura, appointed one of them as caliph, and, setting up a state within a state, they challenged the writ of the government. They established a new Caliphate, under a new leader and rebelled against the Caliphate of Ali. They would meticulously perform tahajjud, five obligatory prayers, and fast and do all acts of worship most rigidly, declaring themselves the only staunch Muslims. They believed that the one who committed a major sin was disbeliever, that is, telling a lie is an act of disbelief. The Kharijites firmly believed that the perpetrator of a mortal sin straight away turned one into a disbeliever. This was the first ever group of extremists and terrorists who kick-started radicalism and militancy, and launched armed aggression against Muslims. That is how the Umma called them by the title ‘Kharijites’ – those who zoomed out of faith. The Companions led by the Caliph Ali took up arms and fought against them. These were Khairjites in a historical perspective.

क्या इमाम हुसैन (अलैहिस्सलाम) के ग़म में रोना हराम और बिदअत है?




Having problem in viewing the Urdu text? Download the fonts here.

रोने वाला हूँ शहीदे करबला  के ग़म में मैं
क्या दुर्रे मक़सद न देंगे साक़ी  कौसर  मुझे

अल्लामा मुहम्मद इक़बाल
बर्ग ए गुल,  कुल्लियाते बाक़ीयाते शेअरे इक़बाल
सफ़्हा 127

بِسْمِ اللّٰہِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِیْمِ

क्या आशूरा के दिन मजलिसे ज़िक्रे हुसैन मुनअकिद करनी चाहिए?
माहे मुहर्रम के आते ही एक ख़ास तबक़ा, जिन को अहलेबैत अतहार से अदावत है, अपना फ़ितना शुरू कर देता है. जिस में आशूरा के फ़ज़ाइल उस दिन ख़ुशी मनाने की, खाने में वुस’अत करने की मोज़ूअ अहादीस बयान की जाती हैं. दूसरी तरफ सय्यदना इमाम हुसैन व शोहदा ए करबला के ज़िक्रे मुबारक को भी नआऊज़ुबिल्लाह हराम क़रार दे दिया जाता है. इसीलिए हम मुख़्तसर तौर पर अर्ज़ करते हैं कि इसकी शरई हैसीयत क्या है?

1. हुज़ूर नबी अकरम का इमाम हुसैन पर गिरया करना (ग़म मनाना)
· हज़रत उम्मे सलमा फरमाती हैं कि हसन और हुसैन दोनों मेरे घर में हुज़ूर के सामने खेल रहे थे कि जिब्राईले अमीं खिदमते अक़दस में हाज़िर हुए और कहा के ऐ मुहम्मद बेशक आपकी उम्मत में से एक जमाअत आपके इस बेटे हुसैन को आपके बाद क़त्ल कर देगी और यह कहने के बाद आप को वहां की थोड़ी सी मिट्टी लाकर दी, जहाँ अब इमाम हुसैनका रोज़ा ए मुबारक है. हुज़ूर अकरम ने इस मिट्टी को अपने सीना मुबारक से लगा लिया और रोते हुए हज़रत उम्मे सलमा को वह मिट्टी देते हुए फ़रमाया: “ऐ उम्मे सलमा ! जब ये मिट्टी खून में बदल जाये तो जान लेना कि मेरा यह बेटा हुसैन क़त्ल कर दिया गया है.” हज़रत उम्मे सलमा ने इस मिट्टी को एक कपड़े में बांध कर रख दिया और वह हर रोज़ इसको देखतीं और फ़रमाती: “ऐ मिट्टी ! जिस दिन तू खून हो जाएगी वह दिन अज़ीम होगा.”
(सिर्रे शहादतेन | खसाइसुल-कुबरा 2:125)
· हज़रत उम्मे सलमा ने ख़्वाब में हुज़ूर अकरम को रोते हुए देखा और आपके सर और दाढ़ी पर मिट्टी पड़ी हुई देखी. हज़रत उम्मे सलमा ने हुज़ूर से पूछा तो आपने फ़रमाया: “अभी हुसैन को क़त्ल किया गया है.”
(अल्मुजम अल-कबीर | सिर्रे शहादतेन | जामे तिरमिज़ी 3796)
· याद रहे कि हुज़ूर नबी अकरम ने फ़रमाया:
من رانی فی المنام فقد رانی فان الشیطان لا یتمثل بی۔
“जिसने मझे ख़्वाब में देखा उसने मझे ही देखा, क्यूँकि शैतान मेरी शक्ल अख्तियार नहीं कर सकता.”
(सहीह बुख़ारी 6996)
2. सय्यदना अली मुर्तुज़ा  का इमाम हुसैन पर गिरया करना (रोना)
· इब्ने साद ने शोअबी से बयान किया है कि सिफ्फीन की तरफ़ से जाते हुए हज़रत अली करबला से गुज़रे. यह फरात नदी के किनारे नैनवा बस्ती के बिल्मुक़ाबिल है. आपने वहां खड़े होकर उस ज़मीन का नाम पूछा तो आपको बताया गया कि इस सरज़मीन को करबला कहते हैं. इतना सुनकर आप रोने लगे. यहाँ तक कि आपके आंसुओं से ज़मीन तर हो गयी. फिर आगे फ़रमाया कि मैं एक बार हुज़ूर नबी अकरम कि बारगाह में हाज़िर हुआ और हुज़ूर को रोता हुआ पाया. मेंने अर्ज़ किया कि हुज़ूर आप किस वजह से रो रहे हैं? तो आप ने फ़रमाया: “अभी जिबराईल ने आकर मझे ख़बर दी है कि मेरा बेटा हुसैन फरात के किनारे एक जगह क़त्ल किया जायेगा, जिसे करबला कहते हैं. फिर जिबराईल ने एक मुठ्ठी में मिट्टी पकड़ कर मझे सुंघाई तो मैं अपने आंसुओं को रोक न सका.
(तबक़ात इब्ने साद | बैहक़ी, अल-खसाईसुल कुबरा- जिल्द 2:126)
3. हज़रत उम्मे सलमा का हज़रत इमाम हुसैन पर गिरया करना (रोना)
हज़रत उम्मे सलमा फ़रमाती हैं कि जब क़त्ले हुसैन की रात आयी तो मैंने एक कहने वाले को कहते हुए सुना: “ऐ हुसैन को जहालत से क़त्ल करने वालों! तुम्हे अज़ाबो ज़िल्लत की खुशखबरी हो, तुम पर इब्ने दाऊद, मूसा और ईसा की ज़ुबान से लानत पड़ चुकी है.”
हज़रत उम्मे सलमा फ़रमाती हैं कि मैं रो पड़ी और मैंने बोतल को खोला तो वह मिट्टी खून होकर बह पड़ी.
(सवाईक़ मुहर्रक़ा, हाफ़िज़ इब्ने हजर मक्की- सफ़्हा 64)

4. हज़रत इब्ने अब्बास   का इमाम हुसैन पर गिरया करना
जब इमाम हुसैन शहीद कर दिए गए तो इब्ने अब्बास इस क़दर रोये (और रोते रहे) कि आख़िर अंधे हो गये.
(तज़किरातुल ख़वास- सफ़्हा 90)
5. हज़रत ज़ैद बिन अरक़म का इमाम हुसैन पर गिरया करना
जब इब्ने ज़ियाद ने इमाम हुसैन के सरे मुबारक और दन्दान मुबारक पर छड़ी मारी तो हज़रत ज़ैद बिन अरक़म ने फ़रमाया: “अपनी छड़ी हटा! मैंने बारहा हुज़ूर अकरम को इन होठों को चूमते देखा है.” यह कह कर वह रोने लगे.
(आईना ए कयामत- सफ़्हा 85)
6. हज़रत इमाम हसन बसरी का इमाम हुसैन पर गिरया करना
जब इमाम हसन बसरी ने शहादते इमाम हुसैन कि ख़बर सुनी तो आप ज़ारो क़तार रोने लगे.
(यनाबीअ उल मवद्दता – सफ़्हा 329)
7. सय्यदा ज़ैनब का अपने भाई इमाम हुसैन और दीगर शौहदा पर गिरया करना
जब मक़तूलीन व शौहदा पर आपका गुज़र हुआ और शौहदा को इस तरह पड़ा देखा तो सय्यदा ज़ैनब बर्दाश्त न कर सकीं और रीते हुए कहने लगीं:
یا محمداہ، یا محمداہ صلی علیک اللہ، و ملک السماہ۔ ھذا حسین یا لعراہ، مزمل بالدماہ، مقطع الاعضاء با محمداہ، و بناتک سبایا، ذرتیک مقتلۃ، تسفی علیھا الصبا۔
“ऐ नाना जान! अल्लाह और उसके फ़रिश्ते आप पर दुरूद भेजें. यहाँ यह हुसैन बे गोर व कफ़न खून में लत पत पड़े हैं, जिस्म के तमाम आज़ा कटे पड़े हैं. ऐ नाना जान! आपकी बेटियां क़ैद में हैं, औलाद सारी शहीद हो चुकी, हवा के झोकें उन पर गर्दो गुबार और मिट्टी उड़ा रहे हैं”
(इब्ने कसीर, अल-बिदाया वन्निहाया- जिल्द 8, सफ़्हा 193)
8. फ़रिशतों का इमाम हुसैन पर गिरया करना
गौसुल आज़म शेख़ अब्दुल कादिर जीलानी अपनी मशहूर तसनीफ़ ‘गुनियातुत तालिबीन’ में लिखते हैं: “अबू नसर ने अपने वालिद से और उन्होंने इमाम जाफ़र बिन मुहम्मद से रिवायत की है कि जिस दिन इमाम हुसैन  ने शहादत पायी, उस रोज़ से सत्तर हज़ार फ़रिश्तें उनकी क़ब्र मुबारक नाज़िल हुए. ये फ़रिश्तें आपकी मज़लूमी और हालते ज़ार पर क़यामत तक नौहा करते रहेंगे.”
(गुनियातुत तालिबीन- सफ़्हा 458)
9. इमाम हुसैन पर जिनों का नौहा
وحدثنا ابوبکر عبد اللہ بن محمد، ثنا احمد بن عمر و بن الضحاک، ثنا ھدبۃ، ثنا  حماد بن سلمۃ، عن عمر بن ابی عمار، عن ام سلمۃ قالت: سمعت الجن تنوح علی الحسین
· उम्मुल मौमीनीन हज़रत उम्मे सलमा फ़रमाती हैं कि उन्होंने इमाम हुसैन पर जिन्नात को नौहा करते हुए सुना.
· इसी तरह हज़रत मैमूना फ़रमाती हैं कि उन्होंने हज़रत इमाम हुसैन पर जिन्नात को नौहा करते सुना.
(मआरफतुस्सहाबा, अबू नईम इस्फ़हानी- जिल्द 2, हदीस 1801, 1804 | मज्माउज़ ज़वाइद- जिल्द 7, किताबुल मनाक़िब, हदीस 15179, 15180)
हाफ़िज़ हैसमी कहते हैं कि ये दोनों रिवायात सहीह हैं)
10. इमाम हुसैन पर आसमान का गिरया करना
· इमाम जलालुद्दीन सुयूती ‘अल-दुर्रल मन्सूर’ में सूराह दुखान की आयत 29 की तफ़सीर में लिखते हैं:
हज़रत इब्राहीम से रिवायत है कि जब से कायनात तख्लीक़ हुई है, आसमान और ज़मीन सिवाए दो अश्खास के किसी के लिए नहीं रोये. उन्होंने लोगों से पूछा कि उन्हें पता है कि आसमान कैसे रोता है? लोगों ने नफ़ी में जवाब दिया तो उन्होंने कहा कि वह बिल्कुल सुर्ख हो जाता है जैसे सुर्ख उबलता हुआ तेल. जिस दिन हज़रत याहया को शहीद किया गया था आसमान सुर्ख हो गया था उस से खून टपक रहा था और दूसरा उस दिन कि जिस दिन इमाम हुसैन को शहीद किया गया.
· इब्ने अबी हातिम कहते हैं कि ज़ैद बिन ज़ियाद ने कहा कि जब इमाम हुसैन को क़त्ल किया गया तो आसमान के किनारे चार माह तक सुर्ख रहे.
(अल-दुर्रल मन्सूर- जिल्द 5, सफ़्हा 748, 749)
· रिवायत है कि जब इमाम हुसैन को क़त्ल किया गया इतना ज़बरदस्त सूरज ग्रहण हुआ कि दिन में सितारे निकल आये.
وعن ابی قبیل، قال: لماقتل الحسین بن علی انکسف الشمس کسفۃ، حتی بدت اکواکب نصف النھار، حتی ظننا انھا ھی۔
(मजमाउज़ ज़वाइद- जिल्द 7, हदीस 15163)
11. इमाम हुसैन पर ज़मीन का गिरया करना
इमाम ज़ाहरी रिवायत करते हैं कि इमाम हुसैन के क़त्ल के दिन शाम में जो भी पत्थर उठाया जाता, उसके नीचे से ताज़ा खून नज़र आता.
وعن الزھری، قال مارفع بالشام حجر یوم قتل الحسین بن علی، الا عن دم۔
(मज्माउज़ ज़वाइद- जिल्द 7, हदीस 15160)
12. ग़मे हुसैन में रोने के मुताल्लिक़ इमाम अहमद बिन हम्बल की रिवायत
असवद बिन आमिर रिवायत करते हैं रबी बिन मंज़र से वह अपने वालिद से कि इमाम हुसैन फ़रमाते थे कि जो आँख हमारे ग़म में रोयी या एक क़तरा आंसू का हमारे लिए गिराया, अल्लाह उसे बहिश्त से नवाज़ेगा.
(फ़ज़ाइले सहाबा, इमाम अहमद बिन हम्बल- हदीस 1154)
13. ग़ैर मुक़ल्लेदीन के नामवर आलिम नवाब सिद्दीक़ हसन खान भोपाली का बयान
नवाब सिद्दीक़ हसन साहब अपनी तफ़सीर फतहुल बयान में नक़ल करते हैं:
“अस्सैदी ने फ़रमाया, जब इमाम हुसैन बिन अली शहीद हुए तो आसमान आपकी शहादत पर इस तरह रोया कि वह सुर्ख हो गया.”
(फतहुल बयान- जिल्द 8, सफ़्हा 326)

14. देवबंद के मशहूर आलिम मौलाना अशरफ़ अली थानवी का ग़मे हुसैन के मुताल्लिक़ इरशाद:
मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी फ़तवा सादिर फ़रमाते हैं कि हक़ीक़त में वाकिया ए जां काह सय्येदुश शौहदा इस क़ाबिल है कि अगर तमाम ज़मीनों आसमान, हूरो मलक और जिन्नों इन्स और जमादातो नबातात क़यामत तक गिरया करें तो भी थोड़ा है.
(फ़तावा इम्दादिया- जिल्द 4, सफ़्हा 60)
मजलिसे ज़िक्रे इमाम हुसैन मुनअकिद करना
1.  सिराजुल हिन्द शाह अब्दुल अज़ीज़ मुहद्दिस देहलवी का आशूरा को मजलिसे इमाम हुसैन मुनाकिद करना
शाह अब्दुल अज़ीज़ मुहद्दिस देहलवी वह बुज़ुर्ग आलिम हैं जिनको हिन्द व पाक के सभी मसालिक- अहले सुन्नत, बरेलवी, देवबंदी, अहले हदीस व सलफी सब मानते हैं, और उन सभी मसलिक के अकाबेरीन को उन से शर्फे तलम्मुज़ भी हासिल है और यह हदीस में सबके उस्ताद हैं. और सब ही इनकी ताज़ीम करते हैं. आप अपनी किताब फ़तावा अज़ीज़ी में फ़रमाते हैं:
“साल में दो मजलिसें फ़क़ीर के मकान में मुनाकिद हुआ करती हैं. मजलिसे ज़िक्रे वफ़ात शरीफ़ और मजलिसे शहादते इमाम हुसैन और ये मजालिस बरोज़ आशूरा (10 मुहर्रम) या इससे एक-दो दिन क़ब्ल होती है. चार पांच सो आदमी बल्कि हज़ार आदमी जमा होते हैं और दुरूद शरीफ़ पड़ते हैं. इसके बाद जब फ़क़ीर आता तो लोग बैठते हैं और फ़ज़ाइले हसनैन करीमैन का ज़िक्र जो हदीस में वारिद है बयान किया जाता है और जो कुछ हदीस में उन बुज़ुर्गों की शहादत का ज़िक्र है. और रिवायत सहीह में जो कुछ तफ़सील बाअज़ हालात की है और उन हज़रात के क़ातिलों कि बद-उन्वानी का बयान है वह ज़िक्र किया जाता है. बाअज़ तकलीफ़ें जो उन हज़रात को हुयीं जो कि रिवायते मोअतबर्रा से साबित हैं बयान की जाती हैं. और इसी ज़िम्न में बाअज़ मरसिया जो जिनों और परियों से हज़रत उम्मे सलमा और दीगर सहाबा ने सुने थे वह भी ज़िक्र किया जाता है. और ख़्वाब हाय वहशतनाक ज़िक्र किये जाते हैं जो हज़रत इब्ने अब्बास और दीगर सहाबा किराम ने देखे थे कि इससे मअलूम होता है है कि जनाब रिसालत मआब को इस वाक़िये से निहायत रंजो ग़म हुआ. उसके बाद फिर ख़त्म क़ुरान हकीम किया जाता है और पंज आयत पढ़कर खाने कि जो चीज़ मौजूद रहती है, उस पर फ़ातिहा किया जाता है. उस असना में अगर कोई शख्स खुश इलहान सलाम पढ़ता है या शरई तौर मरसिया पढ़ने का इत्तेफाक़ होता है तो अक्सर हाज़रीने मजलिस और इस फ़क़ीर को भी हालते रिक्क़त और गिरया की लाहक़ हो जाती है. इस क़दर अमल में आता है. अगर ये सब फ़क़ीर के नज़्दीक इस तरीक़े से जिस का ज़िक्र किया है जाइज़ ना होता तो हरगिज़ फकीर इन चीज़ों पर इक़दाम न करता और इसके अलावा और उमूरे दीगर ख़िलाफ़ शरअ हैं. इनके बयान करने कि ज़रूरत नहीं है. ज़्यादा क्या लिखें.” वस्सलाम सन 1238 हिजरी
(फ़तावा अज़ीज़ी- सफ़्हा 199-200)
2. अहमद रज़ा खां साहब बरेलवी का मजलिसे ज़िक्रे इमाम हुसैन के ताल्लुक़ से बयान
आप माहे मुहर्रम में ज़िक्रे इमाम हुसैन के ताल्लुक़ से इरशाद फ़रमाते हैं: “मौलाना शाह अब्दुल अज़ीज़ की किताब ‘सिर्रे शहादतेन’ जो अरबी ज़ुबान में है वह या हसन मियां मरहूम मेरे भाई की किताब ‘आईना ए क़यामत’ में सही रिवायात हैं. उन्हें सुनना चाहिये. बाक़ी ग़लत रिवायात के पढ़ने से न पढ़ना और न सुनना बेहतर है.”
(मल्फूज़ाते आला हज़रत, हिस्सा दोम, अर्ज़ो इरशाद 59)

हुसैन की मुहब्बत अल्लाह की मुहब्बत
· हुज़ूर अकरम ने फ़रमाया: “मैं तुम में दो अज़ीम चीज़ें छोड़ जा रहा हूँ, इनमें से पहली अल्लाह की किताब है जिसमें हिदायत और नूर है. अल्लाह की किताब पर अमल करो उसे मज़बूती से थाम लो. और दूसरी मेरे अहलेबैत हैं. मैं तुम्हें अपने अहलेबैत के मुताल्लिक़ अल्लाह की याद दिलाता हूँ, मैं तुम्हें अपने अहलेबैत के मुताल्लिक़ अल्लाह की याद दिलाता हूँ, मैं तुम्हें अपने अहलेबैत के मुताल्लिक़ अल्लाह की याद दिलाता हूँ,
इस हदीस को इमाम मुस्लिम और इमाम अहमद बिन हम्बल ने रिवायत किया है.
(सहीह मुस्लिम, बाब: फ़ज़ाइल ए सहाबा, रक़म 2408
इमाम अहमद बिन हम्बल, अल-मुसनद, रक़म 19265)
· हज़रत याअला बिन मुर्रा से रिवायत से है कि हुज़ूर नबी अकरम ने फ़रमाया: “हुसैन मझसे है और मैं हुसैन से हूँ. अल्लाह उस शख्स से मुहब्बत करता है जो हुसैन से मुहब्बत करता है”
(जामे तिरमिज़ी- 2:219)
लिहाज़ा तमाम उलमा ए अहले सुन्नत को चाहिये कि माहे मुहर्रम में और ख़ुसूसन 10 मुहर्रम यानी यौमे आशूरा को मजलिसे ज़िक्रे इमाम हुसैन व शौहदा ए करबला मुनाकिद करें और दुआ व फ़ातिहा का इस तरीक़े से अह्तेमाम करें जो तरीक़ा उलमाए अहले सुन्नत ने बताया है. ताकि अवामुन्नास को सहीह अक़ाइद का पता चले और अवाम मुहब्बते अहलेबैत की बिना पर गुमराही की तरफ़ माइल न हो. अल्लाह पाक हमें सही अक़ीदा पर क़ायम रखे और अपने हबीब मुहम्मदे अरबी और आपकी अहलेबैते अतहार की सच्ची मुहब्बत और गुलामी नसीब फ़रमाए. आमीन!
u

तरतीब:

प्रोफेसर ख़ुसरो क़ासिम सिद्दीक़ी
(अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी, अलीगढ़)

सय्यद बिलाल हैदर
(जम्मू-कश्मीर)

Prophetic Mercy Towards Disbelievers and Enemies


Almighty Allah made the religion of Islam, a religion of mercy, ease, moderation, clemency and temperance. The Holy Prophet(peace be upon him) was sent as mercy to the whole of creation; and he is full of compassion and kindness. Holy Prophet (peace be upon him) gave the lesson of brotherhood, tolerance, moderation and peace. The following traditions show that in spite of immense hardships and painful ordeals, the mercy and compassion of the Prophet (peace be upon him) remained to the fore, even towards those who opposed and persecuted him. 

Hadith #1 

According to Hadrat Anas (Radiyallahu anhu): 
A Jewess brought poisoned meat of a sheep to Allah’s Messenger (peace be upon him) and he ate a little from it.(After the plot was discovered, as the poison became manifest) she was brought to Allah’s Messenger (peace be upon him) and he asked her why she did it. 

She replied ,"I wanted to assassinate you".  
Allah’s Messenger (peace be upon him) said, "Allah will not empower you to do it". 
The Companions (RA) submitted, ” Shall we not kill her?” 
He (PBUH) replied, "No". (And he forgave the Jewess). 
According to Hadrat Anas (Radiyallahu anhu), "I continued to see the effect of her poison on the Messenger’s palate.” 

  1. Sahih Bukhari, Book on Giving Gifts and Its Virtue and How that is Encouraged, Chapter Accepting Gifts from the Polytheists,2:923 Hadith #2474; 
  2. Sahih Muslim , Book Al- Salam , Chapter Poison 4:1721 Hadith #2190;
  3. Ahmed b. Hanbal in al-Musnad 3:218 Hadith #13309; 
  4. Sunan Abu Dawud, Bk. Al-Diyat,4:173 Hadith #4508; 
  5. Al-Bayhaqi in Al-Sunan Al-Kubra 10:11 Hadith #19500 


Hadith #2 

According to Hadrat Asma (Radiyallahu Anha) , the daughter of Hadrat Abu Bakr (Radiyallahu Anhu), "During the days of Allah’s Messenger (peace be upon him) , my mother came to see me, and at that time she was an idolater, so I sought counsel from Allah’s Messenger (peace be upon him) asking , “She is eager to see me, so shall I keep ties with her [even though she is an idolator]?”

He said ,”Yes, keep ties with your mother”

  1. Sahih Bukhari, Kitab Al-Jizya,Chapter on The Sinfulness of He who makes a contract and then betrays the trust, 3:1162 Hadith #3012; 
  2. Sahih Muslim, Kitab Al-Zakat 2:696 Hadith #1003;
  3. Sunan Abu Dawud, Kitab Al-Zakat , Ch. Giving Charity to Non-Muslim Citizens, 2:127 Hadith #1668; 
  4. Abd Al- Razzaq Al-Musannaf 6:38 Hadith #9932;
  5. Al-Tabarani, Al-Mu’jam Al-Kabir 24:78 Hadith #203 


Hadith #3 

According to Hadrat Anas b. Malik (Radiyallahu Anhu), “Eighty armed men from Mecca went to Allah’s Messenger (peace be upon him) from Mount Tan’im with the intention of slaying him and his companions (ra) deceiving them unaware, but he captured them and spared them later, so Allah revealed:
“And He is the One Who held back the hands of those (disbelievers) from you and your hands from them on the frontier of Mecca (near al-Hudaybiya) after giving you the upper hand over their (party). And Allah best monitors what you do.” [Surah Al-Fath Chapter 48 : Verse 24]


  1. Muslim in al-sahih..Bk.:al-Jihad wa al-siyar (The Striving and Military Expeditions),Ch.:”The Saying of Allah Most High: (And it is He who restrained their hands from you) 3:1442 Hadith $1808;
  2. Ahmed b.Hanbal in al-Musnad,3:I24,290 Hadith #12276,14122;
  3. Abu Dawud in al-sunan: Bk.:al-Jihad (The Striving),Ch.:”Freeing captives Without Ransom,”3:61 , Hadith #2688


Hadith #4 

According to Hadrat Abu Hurayra (Radiyallahu Anhu), “It was submitted “O Messenger of Allah, invoke a curse against the idolaters.’
He replied, ‘I was not sent as a curser. I was only sent as(an embodiment of) mercy.'”


  1. Sahih Muslim, Kitab Al-Birr wa sila wa al-Adab , Chapter The Prohibition of invoking curse against creatures and other things, 4:2006 Hadith #2599; 
  2. Imam Bukhari in Al-Adab Al-Mufrad,Hadith #321; 
  3. Abu Yala Al-Musnad 11:35 Hadith #6174;
  4. Al-Bayhaqi Shu’ab al-Iman 2:144, Hadith #403 


Hadith #5

According to Hadrat Abu Hurayra (Radiyallahu Anhu) , Allah’s Messenger(peace be upon him) said [on the day of conquest of Mecca], "Whoever enters the abode of Abu Sufyan is safe; whoever casts aside his weapon is safe; and whoever locks his door is safe.”


  1. Sahih Muslim , Kitab Al-Jihad wa al-Siyar, Ch. The Conquest of Mecca, 3:1407 Hadith #1780;
  2. Abu Dawud in al-Sunan Book al-Kharaj wa al-imara wa al-fai, Ch. What has been narrated about Mecca, 3:162 Hadith #3021; 
  3. Al-Bazzar Al- Musnad 4:122 Hadith #1292; 
  4. Al-Daraqutni in al-Sunan 3:60 Hadith #233


Courtesy: Muhammad, the Merciful